बीते समय में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने राजनीति करने के तरीके में बदलाव किया है। अगर आप निष्पक्ष तौर पर दोनों को देखेंगे तो समझ आएगा कि दोनों बड़ी-बड़ी रैलियों में संबोधन करने से ज्यादा छोटे-छोटे जगह पर जाकर लोगों से मिलते हैं और उनसे बात करते हैं। कई लोगों को लगता है कि राहुल गांधी को लखीमपुर नही जाना चाहिए या उनके जाने से क्या होगा। आपको बता दूं कि जब किसी के घर को अनहोनी होती और कोई जनप्रतिनिधि उससे मिलता है तो उस इंसान को क्षणिक भर के लिए ही सही,लेकिन ऐसा लगता है कि कोई उसके साथ खड़ा है। जब देश की कथित सबसे बड़े पार्टी के मुखिया पीड़ितों से मिलने न आ सके तो विपक्ष के नेता के आने पर सवाल कैसा? और भाई राजनेता है तो राजनीति तो करेगा ही ..इसमें गलत क्या है ? राहुल गांधी सबसे बेहतर तो नही लेकिन बेहतर बनकर उभरते हुए नए नेता हैं। जनता के साथ ये लगाव उन्हें राजनीति में अच्छी बढ़त देगा।
Thursday, 7 October 2021
Tuesday, 14 September 2021
सफल कौन ?
पिता से झूठ बोल कर जेब खर्च लेने वाले लड़के, दोस्तों के साथ नई संगति में सिगरेट की कस लगाने वाले लड़के, क्लास में पीछे बैठ कर शोर करने वाले लड़के एक न एक दिन सफल हो जाते हैं।
लड़के जिनकी माँ से हो जाती हो अनबन पर फिर आकर मांगी हो माफी, लड़के जिनके कारण पिता की आंखों में आया होगा आंसू का कतरा मगर फिर गले से लगा लिया गया हो ..वे लड़के भी सफल हो जाते हैं
लड़के जो बहनों को टोकते हैं अक्सर,पर करते है खुद से भी ज्यादा प्यार रखते है उनका सबसे अधिक ख्याल;वो भी सफल हो जाते है
लड़के जिन्होंने रुलाया होगा प्रेमिका को हर बार लेकिन उठाया नहीं होगा हाथ, लड़के जिनके दोस्तों से होती होंगी रोज लड़ाइयां; वे भी सफल हो जाते हैं
लड़के जो करते हैं नारीवाद का विरोध मगर थामे रहते हैं मुश्किलों में औरतों का हाथ;वो भी सफल हो जाते हैं
लड़के जो नहीं जाते किसी मंदिर या मजार पर बांधते है माँ का दिया धागा;वो भी सफल हो जाते हैं
लड़के जो मन का ना होने पर करते हैं अपनो का विरोध पर टूटने नहीं देते उनसे अपने रिश्ते की डोर; वो भी सफल हो जाते है
मगर वे लड़के जो दिल देकर मुकर जाते हैं, लड़के जिन्हें कीमत नही होती अपनों की,लड़के जो परिवारों में डालते हैं फुट; कभी सफल नही हो पाते
लड़के जिनकी नज़रें रहती हैं महिलाओं के छातियों पर, लड़के जिन्हें अपनी जरूरत सबसे प्यारी होती है; वे कभी सफल नही
हो पाते
वे लड़के भी सफल नही होते जो पिता को भरी दोपहरी खेत में अकेला काम करता छोड़ आये हों, लड़के जो नए शहर में जाकर भूल जाते हैं माँ की दी गयी सीख; वे कभी सफल नही हो पाते
लड़के जिनकी आंखों में बूढ़े इंसान के लिए कोई करुणा न हो , लड़के जो चाहते हैं कि बात सिर्फ उनकी सुनी जाए; वे भी सफल नही हो पाते
वो लड़के भी सफल नही हो पाते जो ठुकराते हैं अन्न का थाल और
उछालते अपनी ब्यहता का बाजार में मान
लड़के जो नहीं बढ़ाते कभी मदद का हाथ उन्हें रहता है खुद पर ही गुमान
लड़के जो नहीं कर पाते किसी का भी सम्मान वो लड़के सफल नहीं हो पाते
लड़के जो उठाते है किसी मजलूम का फायदा, लेते है उसकी बद्दुआ
जिनके चेहरे पर आती है किसी को मार कर मुस्कान
मानिये बात
जिंदगी के एक तकाज़े पर वो भी असफल हो जाते हैं।
Tuesday, 18 May 2021
प्रेम में सबसे प्यारा क्या होता है ?
सबसे प्यारा होता है लंबी रिंग के बाद किसी के फ़ोन का उठ जाना
सबसे प्यारा होता है किसी से ये सुनना की ' आज पता है क्या हुआ'
सबसे प्यारा तो होता है बाहों की शीतलता को सपनों में लपेट लेना
और सबसे प्यारा होता है मेरे कहे पर यकीन कर लेना
सबसे प्यारा तो चुम्बन भी होता है जो होंठो से नही चुटकियों से दी जाती हैं
अचानक किसी रोज बेवजह की फिक्र और गुड मॉर्निंग मेसेज भी प्यारा होता है
सबसे प्यारा फ़ोन पर साँसों को सुनना होता है और ये बताना की नींद में कई बातें हुईं जो जागते में नही की जा सकी
सबसे प्यारा तुम्हारा मुझे 'तुम बहुत बुरे हो' कहना होता है क्योंकि उसके बाद उमड़ता है अथाह प्रेम जिसकी लहर बुरे होने के छाप को बहा रही होती है
सबसे प्यारा रुंधी आवाज़ में 'आई लव यू' सुनना होता है जो सुन तो कान रहे होते हैं पर सिहरन रोम रोम में हो रही होती है
प्यारा तो पसीने वाला हाथ भी होता है और चुभने वाला कंधा भी जिसपर कोई "चांदनी" बन अपने जज्बातों में डूब चुका होता है
सबसे प्यारा बालों का बिखरना होता है जिसमें कोई हर पल उलझ रहा होता है पर ये सुलझने से ज्यादा सुकूनदेह होता है
और सबसे प्यारा होता है "कुत्तों का भौकना"
Thursday, 25 March 2021
सब ठीक हो जाएगा.
'सब ठीक हो जाएगा' इतना कह देने से सब कहाँ ठीक हो पाता है। क्या सब ठीक करने के लिए लगती होंगी हज़ारों मिन्नतें, कई वायदे और आइंदा न होने का भ्रम । कितने हिस्से और कितने टुकड़ों में बिखर के बोलना होता होगा कि सब ठीक हो जाएगा मगर सब ठीक होना होता तो ये कहना क्यों होता और अगर कहना है तो होने पर संशय है। सब ठीक कर देने की बात को तो बस कह भर देना होता है लेकिन सोचता कौन है कि कितना बिगड़ा है और गर बिगड़ा है तो तुम्हारा हाथ कितना था । बस हम ठीक कर देने की बात कर आते हैं और सामने वाले को एक झूठी मृगतृष्णा दिखा आते हैं जबकि हमें खुद नही पता होता कि सब ठीक होगा या नही । बस सब ठीक हो जाये पर क्या पता जब ठीक हो तब कोई इस ठीक होने की चाहत को भुला चुका हो।