Monday, 14 August 2023

जब लॉर्ड माउंटबेटन से अचानक पूछ ली गई थी आज़ादी की तारीख़, कैसे तय हुआ था 15 अगस्त का दिन?

 

Independence Day
तब के हिंदुस्तान टाइम्स के अख़बार में भारत के आज़ाद होने की ख़बर (फोटो साभार- हिंदुस्तान टाइम्स)

आज भारत आज़ादी का 77वाँ सालगिरह मना रहा है.आज के समय विकासशील देश कहलाने वाला भारत कभी अंग्रेज़ों का उपनिवेश हुआ करता था.

उपनिवेश यानी ‘ग़ुलामी’ जहां बड़े और ताक़तवर देश छोटे देशों पर कब्ज़ा कर उस पर शासन किया करते थे. भारत की आज़ादी की लड़ाई काफ़ी लंबी रही और इसके लिए कई फ्रीडम फाइटर ने अपनी जान को दांव पर लगा दिया. 

भारत में साल 1930 में ही आज़ादी का ऐलान कर दिया गया था, लेकिन पूरी आज़ादी 15 अगस्त 1947 को मिली. लेकिन आज़ादी की तारीख़ 15 अगस्त ही क्यों, क्या इसकी कोई वजह थी?

फ्रेंच लेखक डॉमिनिक लापियरे और लैरी कॉलिंस ने अपनी किताब 'फ़्रीडम एट मिडनाइट' में भारत के आज़ाद होने की तारीख़ के बारे में उल्लेख किया है. 

किताब में लिखा गया है कि कई बैठकों के बाद जब तत्कालीन गर्वनर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन भारत की आज़ादी को लेकर प्रेस काफ़्रेंस कर रहे थे तब उनसे सवाल पूछा गया कि क्या वो भारत की आज़ादी की तारीख़ तय कर चुके हैं?

अचानक पूछे गए इस सवाल के लिए माउंटबेटन तैयार नहीं थे, लेकिन उन्होंने सोचा कि इसका जवाब देना ज़रुरी है और झटपट उन्होंने एक तारीख़ सोचने के लिए दिमाग पर ज़ोर डाला. 

उन्हें याद आने लगा 15 अगस्त 1945 का वो गौरवमयी दिन, जब जापान ने दित्तीय विश्व युद्ध में अपना आत्मसमर्पण उन्हें सौंपा था. 

माउंटबेटन द्वितीय विश्व युद्ध में दक्षिण-पूर्व एशिया कमान के सर्वोच्च सहयोगी कमांडर थे. उन्होंने ही द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में जापान के आत्मसमर्पण को स्वीकार किया था. 

इसके बाद उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में भारत की आज़ादी की तारीख़ 15 अगस्त 1947 की तारीख़ तय कर दी. ये तत्काल लिया गया फै़सला था. 

इस घोषणा के बाद ब्रिटेन की संसद ने ‘इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947’ में माउंटबेटन द्वारा तय किए गए तारीख़ को मंजूर कर दिया.

हमें आजादी ‘इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947’ के तहत मिली थी. एक्ट को ब्रिटिश संसद के दोनों सदनों से 18 जुलाई 1947 को पास कराया गया था. इस एक्ट के तहत 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश सरकार भारत से अपना उपनिवेश ख़त्म करने वाली थी. 

क्या था इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट? 

ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान भारत में ब्रिटेन सरकार का एक प्रतिनिधि होता था जिसे भारत में वायसराय के तौर पर नियुक्त किया जाता था. तब ब्रिटिश शासन के दौरान एक परंपरा थी कि जो भारत का वायसराय होगा वही भारत का गवर्नर-जनरल भी होगा. 

ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स और हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स ने ‘इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947’ को पास किया था. इसके एक्ट के मुताबिक़ भारत पर ब्रिटिश उपनिवेश को ख़त्म कर इसे दो डोमिनियन में बांटा गया. इन दो डोमिनियन का नाम था भारत और पाकिस्तान. 

डोमिनियन का मतलब किसी राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर प्रतीकात्मक तौर से आधिपत्य ज़ाहिर करना. हालांकि इसी एक्ट में भारत और पाकिस्तान को ये शक्ति भी दी गई थी कि वे डोमिनियन स्टेटस न अपनाकर संप्रभु राष्ट्र बन सकते हैं. 

भारत और पाकिस्तान को इस एक्ट की सभी शर्तों को ख़ारिज करने का भी विकल्प दिया गया था. हालांकि हमारा संविधान जब तक बनकर तैयार नहीं हो गया तब तक गवर्नर-जनरल के पद को ख़ारिज नहीं किया गया. 

भारत कब तक ब्रिटेन का डोमिनियन बना रहा?

भारत 15 अगस्त 1947 से लेकर 26 जनवरी 1950 तक ब्रिटेन का डोमिनियन बना रहा. इसके बाद भारतीय संविधान लागू हो गए और इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट की शर्तों को ख़ारिज़ कर दिया गया. हालांकि पाकिस्तान 1956 तक ब्रिटेन का डोमिनियन बना रहा. 

महात्मा गांधी ने आज़ादी मनाने के लिए क्या अपील की थी?

रामचंद्र गुहा कि किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में बताया गया है कि महात्मा गांधी ने 1931 में पूर्ण स्वराज की मांग के बाद यंग इंडिया में उन्होंने आज़ादी का खास दिन को कैसे मनाया जाना चाहिए, इसपर एक लेख लिखा था. 

किताब के मुताबिक गांधी ने लिखा था, "लोगों को ये दिन रचनात्मक कार्यों को करने में बिताना चाहिए. चाहे वो चरखा चलाना हो या 'अछूतों' की सेवा करना हो, हिंदू-मुसलमान का मिलन हो या फिर किसी भी काम को करने से इनकार करना हो. ये सारे काम एक साथ भी किए जा सकते हैं, ये असंभव नहीं है." 

"भारत की आज़ादी में हिस्सा लेने वाले लोग इस बात की शपथ लें कि 'आज़ादी, भारतीय जनता और दुनिया के किसी भी हिस्से में रहने वाली जनता का प्राकृतिक अधिकार है ताकि वे अपनी मेहनत के फल के अधिकारी खुद हों और अगर कोई भी सरकार उनको इस हक़ से वंचित कर उनका दमन करती है तो उन्हें ये अधिकार है कि वे इसका विरोध करें और उस सत्ता को ख़त्म कर दें." 

Monday, 14 November 2022

प्रेम, सनक और 35 टुकड़े

 प्रेम दुनिया की सबसे अद्भुत क्रिया है, मैं तो कहता हूं की सबसे स्वास्थ्यवर्धक है. बगैर प्रेम के इंसान कहां इंसान रह जाता है. इसके बिना जीवन संभव ही नहीं है. प्रेम ही तो एक शास्त्र है जिसके जरिए इस दुनिया को बचाए रखने की प्रेरणा है और ये विश्वास है कि जब सब खत्म हो रहा होगा तो प्रेम ही एकमात्र रास्ता होगा मानव समाज के उद्धार का. सृजन के मूल में ही प्रेम है. लेकिन ये प्रेम कैसा हो ? एकतरफा, मनमाना ? 

प्रेम तो जायज तब होता है जब दो लोग एक दूसरे को जीने के लिए अपनी रजामंदी देते हों. प्रेम होता संवाद से, जज़्बात से, व्यवहार से भी. अगर प्रेम में व्यवहार न था तो प्रेम के क्या मायने. 


मुंबई से भागकर दो युगल दिल्ली जाते हैं, लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं. छः महीने तक सब ठीक रहता है फिर अचानक एक दिन पता चलता है की लड़का जिसका नाम आफताब है उसने अपनी प्रेमिका को जान से मार डाला, बल्कि बेरहमी से टुकड़ों में उसके शरीर के हिस्से कर दिए. पुलिस को शुरुआती जांच में पता चला कि आफताब और उसकी प्रेमिका श्रद्धा के बीच लड़ाई होते रहते थे. श्रद्धा लगातार आफताब पर शादी के लिए दबाव बना रही थी. और तो और आफताब के कई और लड़कियों से अवैध संबंध थे. 





घटना के तह में जाने पर यही समझ आता है की आफताब एक मनोरोगी इंसान है, प्रेम का मतलब उसके लिए सिर्फ और सिर्फ दैहिक सुख है.जब उसका मतलब किसी महिला से निकल गया उसके बाद वो उसे तनिक भी अपने जिंदगी के केंद्र में नहीं रख सकता. क्योंकि ये उसकी मनोवृति है. ऐसे इंसान स्त्री को विलासिता भर के लिए 'उपयोग' करते हैं.ऐसे लोग दब्बू होते हैं जो भेड़िए की सोच रखते हैं. लेकिन इनसे उन्हें क्या संतुष्टि मिलती होगी, क्योंकि देह की ऊष्मा तो चंद समय की होती है, अंत तो संवाद ही करना है.





Thursday, 7 October 2021

राहुल गाँधी की 'राजनीति'

 बीते समय में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने राजनीति करने के तरीके में बदलाव किया है। अगर आप निष्पक्ष तौर पर दोनों को देखेंगे तो समझ आएगा कि दोनों बड़ी-बड़ी रैलियों में संबोधन करने से ज्यादा छोटे-छोटे जगह पर जाकर लोगों से मिलते हैं और उनसे बात करते हैं। कई लोगों को लगता है कि राहुल गांधी को लखीमपुर नही जाना चाहिए या उनके जाने से क्या होगा। आपको बता दूं कि जब किसी के घर को अनहोनी होती और कोई जनप्रतिनिधि उससे मिलता है तो उस इंसान को क्षणिक भर के लिए ही सही,लेकिन ऐसा लगता है कि कोई उसके साथ खड़ा है। जब देश की कथित सबसे बड़े पार्टी के मुखिया पीड़ितों से मिलने न आ सके तो विपक्ष के नेता के आने पर सवाल कैसा? और भाई राजनेता है तो राजनीति तो करेगा ही ..इसमें गलत क्या है ? राहुल गांधी सबसे बेहतर तो नही लेकिन बेहतर बनकर उभरते हुए नए नेता हैं। जनता के साथ ये लगाव उन्हें राजनीति में अच्छी बढ़त देगा।



Tuesday, 14 September 2021

सफल कौन ?

 पिता से झूठ बोल कर जेब खर्च लेने वाले लड़के, दोस्तों के साथ नई संगति में सिगरेट की कस लगाने वाले लड़के, क्लास में पीछे बैठ कर शोर करने वाले लड़के एक न एक दिन सफल हो जाते हैं।


लड़के जिनकी माँ से हो जाती हो अनबन पर फिर आकर मांगी हो माफी, लड़के जिनके कारण पिता की आंखों में आया होगा आंसू का कतरा मगर फिर गले से लगा लिया गया हो ..वे लड़के भी सफल हो जाते हैं


लड़के जो बहनों को टोकते हैं अक्सर,पर करते है खुद से भी ज्यादा प्यार रखते है उनका सबसे अधिक ख्याल;वो भी सफल हो जाते है


लड़के जिन्होंने रुलाया होगा प्रेमिका को हर बार लेकिन उठाया नहीं होगा हाथ, लड़के जिनके दोस्तों से होती होंगी रोज लड़ाइयां; वे भी सफल हो जाते हैं


लड़के जो करते हैं नारीवाद का विरोध मगर थामे रहते हैं मुश्किलों में औरतों का हाथ;वो भी सफल हो जाते हैं


लड़के जो नहीं जाते किसी मंदिर या मजार पर  बांधते है माँ का दिया धागा;वो भी सफल हो जाते हैं


लड़के जो मन का ना होने पर करते हैं अपनो का विरोध पर टूटने नहीं देते उनसे अपने रिश्ते की डोर; वो भी सफल हो जाते है


मगर वे लड़के जो दिल देकर मुकर जाते हैं, लड़के जिन्हें कीमत नही होती अपनों की,लड़के जो परिवारों में डालते हैं फुट; कभी सफल नही हो पाते


लड़के जिनकी नज़रें रहती हैं महिलाओं के छातियों पर, लड़के जिन्हें अपनी जरूरत सबसे प्यारी होती है; वे कभी सफल नही

 हो पाते 


वे लड़के भी सफल नही होते जो पिता को भरी दोपहरी खेत में अकेला काम करता छोड़ आये हों, लड़के जो नए शहर में जाकर भूल जाते हैं माँ की दी गयी सीख; वे कभी सफल नही हो पाते


लड़के जिनकी आंखों में बूढ़े इंसान के लिए कोई करुणा न हो , लड़के जो चाहते हैं कि बात सिर्फ उनकी सुनी जाए; वे भी सफल नही हो पाते 


वो लड़के भी सफल नही हो पाते जो ठुकराते हैं अन्न का थाल और 

 उछालते अपनी ब्यहता का बाजार में मान


लड़के जो नहीं बढ़ाते कभी मदद का हाथ उन्हें रहता है खुद पर ही गुमान

लड़के जो नहीं कर पाते किसी का भी सम्मान वो लड़के सफल नहीं हो पाते


लड़के जो उठाते है किसी मजलूम का फायदा, लेते है उसकी बद्दुआ 

जिनके चेहरे पर आती है किसी को मार कर मुस्कान 

मानिये बात 

जिंदगी के एक तकाज़े पर वो भी असफल हो जाते हैं।

Tuesday, 18 May 2021

प्रेम में सबसे प्यारा क्या होता है ?

सबसे प्यारा होता है लंबी रिंग के बाद किसी के फ़ोन का उठ जाना


सबसे प्यारा होता है किसी से ये सुनना की ' आज पता है क्या हुआ'


सबसे प्यारा तो होता है बाहों की शीतलता को सपनों में लपेट लेना 


और सबसे प्यारा होता है मेरे कहे पर यकीन कर लेना 


सबसे प्यारा तो चुम्बन भी होता है जो होंठो से नही चुटकियों से दी जाती हैं 



अचानक किसी रोज बेवजह की फिक्र और गुड मॉर्निंग मेसेज भी प्यारा होता है 


सबसे प्यारा फ़ोन पर साँसों को सुनना होता है और ये बताना की नींद में कई बातें  हुईं जो जागते में नही की जा सकी




सबसे प्यारा तुम्हारा मुझे 'तुम बहुत बुरे हो' कहना होता है क्योंकि उसके बाद उमड़ता है अथाह प्रेम जिसकी लहर बुरे होने के छाप को बहा रही होती है



सबसे प्यारा  रुंधी  आवाज़ में 'आई लव यू' सुनना होता है जो सुन तो कान रहे होते हैं पर सिहरन रोम रोम में हो रही होती है


प्यारा तो पसीने वाला हाथ भी होता है और चुभने वाला कंधा भी जिसपर कोई "चांदनी" बन अपने जज्बातों में डूब चुका होता है


सबसे प्यारा बालों का बिखरना होता है जिसमें कोई हर पल उलझ रहा होता है पर ये सुलझने से ज्यादा सुकूनदेह होता है


और सबसे प्यारा होता है "कुत्तों का भौकना"


Thursday, 25 March 2021

सब ठीक हो जाएगा.

 'सब ठीक हो जाएगा' इतना कह देने से सब कहाँ ठीक हो पाता है। क्या सब ठीक करने के लिए लगती होंगी हज़ारों मिन्नतें, कई वायदे और आइंदा न होने का भ्रम । कितने हिस्से और कितने टुकड़ों में बिखर के बोलना होता होगा कि सब ठीक हो जाएगा मगर सब ठीक होना होता तो ये कहना क्यों होता और अगर कहना है तो होने पर संशय है। सब ठीक कर देने की बात को तो बस कह भर देना होता है लेकिन सोचता कौन है कि कितना बिगड़ा है और गर बिगड़ा है तो तुम्हारा हाथ कितना था । बस हम ठीक कर देने की बात कर आते हैं और सामने वाले को एक झूठी मृगतृष्णा दिखा आते हैं जबकि हमें खुद नही पता होता कि सब ठीक होगा या नही । बस सब ठीक हो जाये पर क्या पता जब ठीक हो तब कोई इस ठीक होने की चाहत को भुला चुका हो।

Thursday, 27 August 2020

क्यों सब छूट रहा है

 ये दिन ढलता क्यों नही, धूप जाती क्यों नही 


हरे भरे रास्ते अब बूढ़े हो चले हैं, रात में जलने वाले बल्ब अब बुझते क्यों नही 


बातें हुईं इतनी की सच मैं भूलने लगा

कोई क्या करेगा प्रेम जब खुद के लिए इतनी नफरत दबाये हैं


चांद अब दिखता क्यों नही है ,आसमान अब रिस्ता क्यों नही है


आंखों की तिजोरियों में कई सपनें संजोये हैं

दूर गांव मैंने भी फूलों के तकिये बिछाये हैं


तो क्या हुआ अब जो सांस थमने लगी, चंचल आंखे अब कही जमने लगी



सवाल इतने कम क्यों  होने लगे हैं

सफर अब घटने क्यों लगा है 


हम कितने बेदाग थे जो ये दाग लगने लगा


हम कितने बेआवाज थे जो ये आवाज़ अब दबने लगा


माघ की सर्दी अब भादो में क्यों लगती है 


रिश्ते कई अब क्यों इतने ठंडे हो चले है 


ये दिन ढलता क्यों नही ,धूप जाती क्यों नही 


ताकि रात आ सके और कोई उस अंधरे में सो सके इन सब उलझनों दे दूर