प्रेम दुनिया की सबसे अद्भुत क्रिया है, मैं तो कहता हूं की सबसे स्वास्थ्यवर्धक है. बगैर प्रेम के इंसान कहां इंसान रह जाता है. इसके बिना जीवन संभव ही नहीं है. प्रेम ही तो एक शास्त्र है जिसके जरिए इस दुनिया को बचाए रखने की प्रेरणा है और ये विश्वास है कि जब सब खत्म हो रहा होगा तो प्रेम ही एकमात्र रास्ता होगा मानव समाज के उद्धार का. सृजन के मूल में ही प्रेम है. लेकिन ये प्रेम कैसा हो ? एकतरफा, मनमाना ?
प्रेम तो जायज तब होता है जब दो लोग एक दूसरे को जीने के लिए अपनी रजामंदी देते हों. प्रेम होता संवाद से, जज़्बात से, व्यवहार से भी. अगर प्रेम में व्यवहार न था तो प्रेम के क्या मायने.
मुंबई से भागकर दो युगल दिल्ली जाते हैं, लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं. छः महीने तक सब ठीक रहता है फिर अचानक एक दिन पता चलता है की लड़का जिसका नाम आफताब है उसने अपनी प्रेमिका को जान से मार डाला, बल्कि बेरहमी से टुकड़ों में उसके शरीर के हिस्से कर दिए. पुलिस को शुरुआती जांच में पता चला कि आफताब और उसकी प्रेमिका श्रद्धा के बीच लड़ाई होते रहते थे. श्रद्धा लगातार आफताब पर शादी के लिए दबाव बना रही थी. और तो और आफताब के कई और लड़कियों से अवैध संबंध थे.
घटना के तह में जाने पर यही समझ आता है की आफताब एक मनोरोगी इंसान है, प्रेम का मतलब उसके लिए सिर्फ और सिर्फ दैहिक सुख है.जब उसका मतलब किसी महिला से निकल गया उसके बाद वो उसे तनिक भी अपने जिंदगी के केंद्र में नहीं रख सकता. क्योंकि ये उसकी मनोवृति है. ऐसे इंसान स्त्री को विलासिता भर के लिए 'उपयोग' करते हैं.ऐसे लोग दब्बू होते हैं जो भेड़िए की सोच रखते हैं. लेकिन इनसे उन्हें क्या संतुष्टि मिलती होगी, क्योंकि देह की ऊष्मा तो चंद समय की होती है, अंत तो संवाद ही करना है.
