Thursday, 27 August 2020

क्यों सब छूट रहा है

 ये दिन ढलता क्यों नही, धूप जाती क्यों नही 


हरे भरे रास्ते अब बूढ़े हो चले हैं, रात में जलने वाले बल्ब अब बुझते क्यों नही 


बातें हुईं इतनी की सच मैं भूलने लगा

कोई क्या करेगा प्रेम जब खुद के लिए इतनी नफरत दबाये हैं


चांद अब दिखता क्यों नही है ,आसमान अब रिस्ता क्यों नही है


आंखों की तिजोरियों में कई सपनें संजोये हैं

दूर गांव मैंने भी फूलों के तकिये बिछाये हैं


तो क्या हुआ अब जो सांस थमने लगी, चंचल आंखे अब कही जमने लगी



सवाल इतने कम क्यों  होने लगे हैं

सफर अब घटने क्यों लगा है 


हम कितने बेदाग थे जो ये दाग लगने लगा


हम कितने बेआवाज थे जो ये आवाज़ अब दबने लगा


माघ की सर्दी अब भादो में क्यों लगती है 


रिश्ते कई अब क्यों इतने ठंडे हो चले है 


ये दिन ढलता क्यों नही ,धूप जाती क्यों नही 


ताकि रात आ सके और कोई उस अंधरे में सो सके इन सब उलझनों दे दूर

Monday, 3 August 2020

मी-लार्ड की राखी.

रक्षाबंधन का अर्थ होता है रक्षा करने वाला बंधन. ये बंधन बहनें अपने भाइयों को बांधती हैं और ज़रूरी नहीं कि भाई खून का संबंध रखता हो. रिश्ता बस विश्वास भर का होना चाहिए फिर चाहे राम हो या रहीम फ़र्क़ नहीं पड़ता. इसी बीच मध्यप्रदेश हाइकोर्ट में लड़की से छेड़छाड़ के मामले में एक आरोपी को जज ने इस शर्त पर ज़मानत दी कि वो उस लड़की से जाकर राखी बंधवायेगा और शगुन में ग्यारह हज़ार रुपये देगा. मुझे इस देश के न्यायव्यवस्था के विवेक पर शंका होती है..क्या ये सही तरीका था उस लड़की के लिए जिससे उस लड़के ने छेड़छाड़ की होगी और अब वो उससे रक्षा की उम्मीद रखने लगेगी? न्यायालय भी उस खाप पंचायत की तरह काम करने लगा है जहां किसी लड़की के बलात्कारी की सज़ा ये होती है कि वो लड़की से शादी कर ले.

जब कोर्ट अपने काम का तरीका बदल कर समाज में उदाहरण पेश करके वाहवाही टोहने लगती हैं तब कहीं एनकाउंटर और इंस्टेंट जस्टिस जैसी चीज़ भी दूसरे धड़े से आने लगती हैं. हम समाज के तौर पर बहुत अविकसित हैं इन सब स्टंट के लिए और कोई भी न्याय ऐसा नहीं होना चाहिए जैसे मध्यप्रदेश के उज्जैन की रहने वाली उस महिला के साथ हुआ वरना कोर्ट एक्सपेरिमेंट करता रह जायेगा और समाज कोर्ट की पहुँच से दूर हो जाएगा फिर कानून के लंबे हाथ किसी काम के नहीं रह जाएंगे.